Monday, June 9, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में महत्वपूर्ण पद पाने के लालच में सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने मनोज फडनिस से यह पूछने का साहस ही नहीं किया कि वह इंस्टीट्यूट के उपाध्यक्ष हैं, जल्दी ही वह अध्यक्ष होंगे - ऐसे में, वही इंस्टीट्यूट के नियम की अवहेलना क्यों करवा रहे हैं और क्यों इंस्टीट्यूट को विष्णु झवर के यहाँ गिरवी रखने की तैयारी कर रहे हैं ?


नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट मनोज फडनिस ने इंस्टीट्यूट को विष्णु झवर के पास गिरवी रखने की तैयारी कर ली है क्या ? इंस्टीट्यूट की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की इंदौर ब्रांच के न्यूजलेटर के मई अंक में उपर वाली तस्वीर को छपा देख कर कई लोगों के मन में यह सवाल कुलबुलाने लगा है । यह तस्वीर माउंट आबू में 19-20 अप्रैल को सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल द्धारा आयोजित चेयरमैन मीट एंड ओरिएंटेशन प्रोग्राम के मौके की है । इस तस्वीर में विष्णु झवर की मौजूदगी ने हर किसी को चौंकाया है । हर किसी के मन में यही सवाल उठा है कि माउंट आबू में आयोजित हुए उक्त कार्यक्रम में विष्णु झवर क्या कर रहे हैं और काउंसिल के विभिन्न पदाधिकारियों के साथ बैठ कर तस्वीर खिंचाने का मौका उन्हें कैसे मिल गया ?
विष्णु झवर इंदौर के एक वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं । इंदौर के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच वह 'काका' के संबोधन से पुकारे और पहचाने जाते हैं । उनकी प्रोफेशनल एक्सपर्टीज क्या हैं - यह तो उनके क्लाइंट जानते होंगे; इंदौर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के बीच उनकी पहचान लेकिन दो सौ-चार सौ वोटों के 'एक थोक सप्लायर' की है । इसीलिए इंदौर में इंस्टीट्यूट के किसी भी स्तर का चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास अवश्य ही करता है । माना/कहा जाता है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में मनोज फडनिस उन्हीं की देन हैं । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट 'बनने' का मौका तो मनोज फडनिस ने अपनी तीन-तिकड़म, अपने आचार-व्यवहार, अपने जुगाड़ और अपनी किस्मत से पाया है - लेकिन इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल तक पहुँचने और वहाँ लंबे समय तक टिके रहने में उन्हें विष्णु झवर की सक्रिय और संलग्न मदद मिली है ।
लेकिन यह तो कोई वजह नहीं बनती है, जिसके चलते माउंट आबू में सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के एक प्रोफेशल व ट्रेनिंग कार्यक्रम में विष्णु झवर को उपस्थित होने का मौका मिले ? मनोज फडनिस को विष्णु झवर के अहसानों का बदला यदि चुकाना ही है तो उसके और बहुत अच्छे अच्छे तरीके हो सकते हैं - एक प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट के प्रोफेशनल कार्यक्रम को अपने निजी मंतव्यों के लिए इस्तेमाल करने का मनोज फडनिस का यह कारनामा कोई अच्छा उदाहरण तो प्रस्तुत नहीं करता है ।
बात यदि 'सिर्फ' इतनी ही होती, तो भी कोई बात न होती ! मनोज फडनिस इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष होने जा रहे हैं - वह यदि अपने 'राजनीतिक गुरु' को अपना जलवा दिखाने के लिए कार्यक्रम का प्रोटोकॉल तोड़ कर कार्यक्रम में शामिल कर भी लेते हैं, तो इसमें किसी के लिए भी बहुत तेवर दिखाने की जरूरत नहीं है । मनोज फडनिस आखिर इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष होने जा रहे हैं, उनकी इस तरह की 'छोटी-छोटी' बातों का यदि नोटिस लिया जायेगा तो यह कोई अच्छी बात नहीं होगी । इंस्टीट्यूट के अध्यक्षों ने कैसे-कैसे गुल खिलाये हुए हैं - उन्हें याद कीजिये और मनोज फडनिस की इस 'छोटी' सी बात पर धूल डालिए यार !
लेकिन .... लेकिन, जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि, बात यदि 'सिर्फ' इतनी ही होती; बात यदि सिर्फ विष्णु झवर की एक कार्यक्रम में उपस्थिति भर की होती तो सचमुच धूल डालने लायक ही होती । किंतु विष्णु झवर की इस उपस्थिति के पीछे के कारण के खुलासे से इंस्टीट्यूट को विष्णु झवर के यहाँ गिरवी रखने वाला सवाल पैदा हुआ है ।
माउंट आबू में सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के उक्त कार्यक्रम में पात्रता न रखने के बावजूद विष्णु झवर की उपस्थिति दरअसल इंदौर ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी में अभय शर्मा को शामिल किए जाने को सुनिश्चित करने बाबत हुई थी । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल की आठ सदस्यीय इंदौर ब्रांच में नवीन खण्डेलवाल के इस्तीफ़ा दे देने के बाद उनकी जगह भरने को लेकर इंदौर से लेकर दिल्ली तक भारी ड्रामा हुआ । ध्यान रखने योग्य तथ्य यह है कि इस तरह की स्थिति के लिए इंस्टीट्यूट का नियम यह कहता है कि ब्रांच के 'किसी भी सदस्य' को खाली हुई जगह दी जा सकती है । इंदौर ब्रांच के चेयरमैन नरेंद्र भंडारी ने लेकिन जब इंस्टीट्यूट के इस नियम का संदर्भ लेकर नवीन खण्डेलवाल के इस्तीफे से खाली हुई जगह को भरने की कार्रवाई शुरू की, तो मनोज फडनिस ने उन्हें लगभग आदेश जैसे भाव के साथ कहा कि उक्त खाली जगह उन्हें आठ सदस्यीय इंदौर ब्रांच के लिए हुए चुनाव में नवें नंबर पर रहने वाले अभय शर्मा को देनी चाहिए । नरेंद्र भंडारी ही नहीं, दूसरे कई लोगों ने भी मनोज फडनिस के इस रवैये पर हैरानी जताई । उनका कहना/पूछना रहा कि मनोज फडनिस इंस्टीट्यूट के उपाध्यक्ष हैं, जल्दी ही वह अध्यक्ष होंगे - ऐसे में, वही इंस्टीट्यूट के नियम की अवहेलना करने को क्यों कह रहे हैं ?
मनोज फडनिस यदि अभय शर्मा को मैनेजिंग कमेटी में लेने की सिफारिश करते, तो भी बात समझ में आती; क्योंकि इंस्टीट्यूट के 'किसी भी सदस्य' संदर्भित नियम में अभय शर्मा भी आते ही हैं - लेकिन मनोज फडनिस जिस तर्क के साथ अभय शर्मा के लिए जगह बनाने की बात कह रहे थे, उससे सीधे-सीधे जाहिर हो रहा था कि मनोज फडनिस इंस्टीट्यूट के नियम की ही ऐसी-तैसी करने पर आमादा थे । कई लोगों को आश्चर्य भी हुआ कि मनोज फडनिस इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं - ऐसे में उनकी चिंताओं और उनकी सक्रियताओं का दायरा बड़ा होना चाहिए; किंतु वह एक टुच्चे किस्म के मामले में अपना नाम, अपनी साख, अपनी प्रतिष्ठा दाँव पर लगाये दे रहे हैं । उनके नजदीकियों ने हालाँकि समझ लिया था कि यह सब वह किसी की सेवा खातिर कर रहे हैं । जल्दी ही इस रहस्य पर से पर्दा भी हट गया । मनोज फडनिस केलिफोर्निया जाने से पहले इंदौर ब्रांच के पदाधिकारियों को हालाँकि आदेश दे गए थे कि उनके वापस लौटने तक मैनेजिंग कमेटी में की खाली जगह को भरने का फैसला न किया जाये, लेकिन फिर भी उन्हें और उन्हें चला रही पर्दे के पीछे की ताकतों को डर हुआ कि ब्रांच के पदाधिकारी कहीं कोई फैसला कर न लें - लिहाजा विष्णु झवर ने सामने आकर मोर्चा संभाला । तब भेद खुला कि ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी के मामले में इंस्टीट्यूट के नियम को ही ठेंगा दिखाने का काम मनोज फडनिस दरअसल विष्णु झवर की सेवा खातिर कर रहे हैं ।
विष्णु झवर के लिए अभय शर्मा को मैनेजिंग कमेटी में लाने का काम असल में विकास जैन के हाथ मजबूत करने के उद्देश्य से करना जरूरी हुआ । विष्णु झवर ने अगले वर्ष होने वाले चुनाव में विकास जैन को सेंट्रल काउंसिल में चुनवाने का बीड़ा उठाया है । इस बार इंदौर ब्रांच के चेयरमैन के चुनाव में विकास जैन को जिस तरह से मुँह की खानी पड़ी, उससे विकास जैन को ही नहीं, विष्णु झवर को भी झटका लगा । चेयरमैन के चुनाव में विकास जैन की जो फजीहत हुई, उससे लोगों के बीच यह संदेश तो गया ही है कि इंदौर में विकास जैन की नहीं चलती । इसलिए इंदौर ब्रांच पर कब्ज़ा करना विकास जैन और विष्णु झवर को जरूरी लगा । अभय शर्मा को विकास जैन के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । अभय शर्मा को किसी भी तरह से मैनेजिंग कमेटी में घुसा कर विकास जैन और विष्णु झवर को अपना उद्देश्य पूरा होता दिखा और इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने पहले मनोज फडनिस को 'काम' पर लगाया और फिर खुद मैदान में कूद पड़े ।
माउंट आबू में आयोजित सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के कार्यक्रम में पात्रता न रखने के बावजूद - समझा जाता है कि - विष्णु झवर गए ही इसलिए थे ताकि वह मनोज फडनिस से अभय शर्मा वाले काम को पक्के से करवा सकें । कार्यक्रम में शामिल होने माउंट आबू पहुँचे इंदौर ब्रांच के चेयरमैन नरेंद्र भंडारी को रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों की तरफ से आश्चर्यजनक तरीके से एक मीटिंग में बने नियम का हवाला पकड़ा दिया गया जिसमें मैनेजिंग कमेटी की खाली हुई जगह हारे हुए निकटतम उम्मीदवार को देने की बात कही गई थी । उक्त मीटिंग और उसमें बने नियम की प्रक्रिया हालाँकि संदेह के घेरे में है - लेकिन मनोज फडनिस ने दबाव बनाया कि रीजनल काउंसिल के उक्त तथाकथित नियम के तहत अभय शर्मा को खाली जगह दी जाए ।
मनोज फडनिस अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में तो अंततः सफल हुए, लेकिन उनकी इस सफलता ने अकेले उनकी ही नहीं - सेंट्रल काउंसिल के सभी सदस्यों की भी पोल खोल कर रख दी है । दरअसल हुआ यह कि उक्त मसले पर अपने आप को बुरी तरह से घिरा पा कर इंदौर ब्रांच के पदाधिकारियों ने फैसला करने से पहले सेंट्रल काउंसिल के सभी सदस्यों से सलाह लेने की कोशिश की और ईमेल के जरिये यह पूछा कि ब्रांच में की खाली जगह को भरने के मामले में उन्हें इंस्टीट्यूट के नियम का पालन करना चाहिए या रीजनल काउंसिल द्धारा फर्जी तरीके से बनाये गए तथाकथित नियम का ? संयोग यह रहा कि इंदौर ब्रांच की तरफ से सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों को जिस समय यह ईमेल मिला उस समय दिल्ली में उनकी एक मीटिंग चल रही थी । इस कारण सभी के सामने यह मामला एक साथ आ गया । जो हालात बने उसमें मीटिंग में मौजूद मनोज फडनिस ने अपनी किरकिरी तो बहुत महसूस की, लेकिन उनकी खुशकिस्मती यह रही कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच 'मौसेरे भाई' बनकर 'मैं तुझे बचाऊँ, तू मुझे बचा' तथा 'मैं तेरी ढाँकु, तू मेरी ढाँक' वाला जो खेल चलता है वह अब भी चला । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को मनोज फडनिस के अध्यक्ष-काल में महत्वपूर्ण पद पाने हैं, ऐसे में भला कौन मुँह खोलता और मनोज फडनिस से कहता कि उन्हें इंस्टीट्यूट के नियम की इस तरह से अवहेलना नहीं करना चाहिए । इंदौर ब्रांच के पदाधिकारियों को सेंट्रल काउंसिल सदस्यों से अपने सवाल का जबाव नहीं ही मिला ।
यह पूरा प्रसंग कुछ ही लोगों की जानकारी में था - और रहता; यदि इंदौर ब्रांच के न्यूजलेटर में ऊपर वाली तस्वीर न छपी होती । न्यूजलेटर में छपी तस्वीर को देखकर कई लोगों का ध्यान इस तथ्य पर गया कि रीजनल काउंसिल की मीटिंग में विष्णु झवर क्या करने और क्यों गए थे ? बात शुरू हुई तो फिर सारी पोल खुली और उसी खुली पोल में यह सवाल पैदा हुआ कि मनोज फडनिस ने इंस्टीट्यूट को विष्णु झवर के यहाँ गिरवी रखने की तैयारी कर ली है क्या ?