Monday, July 13, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी ने पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के समीकरणों को उलझाया

पुणे । अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी से वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए पुणे में होने वाली चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा हो गई है । यूँ तो अंबरीश वैद्य को पुणे के उस खेमे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, जिस खेमे की तरफ से पिछली बार विजयकांत कुलकर्णी ने उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी और रीजनल काउंसिल में जगह बनाने में असफल रहे थे - इस नाते से कुछेक लोगों को अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी से पुणे के सत्ता समीकरणों में कोई बड़ा उलटफेर होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है; किंतु अन्य कई लोगों को अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी में पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का भविष्य आकार लेता हुआ 'दिखाई' दे रहा है । जो लोग अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी को एक सामान्य चुनावी कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं, उनका कहना है कि विजयकांत कुलकर्णी पुणे ब्रांच के चेयरमैन रह चुकने के बाद भी जब रीजनल काउंसिल का चुनाव नहीं जीत सके - तो अंबरीश वैद्य ही क्या खास कर लेंगे ? इस बार चूँकि दिलीप ऑप्टे रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं दिख रहे हैं, इसलिए हो सकता है कि अंबरीश वैद्य आसानी से चुनाव जीत जाएँ - पर इसमें क्या खास बात है ? दिलीप ऑप्टे पिछली बार चुनाव यदि नहीं लड़ते, तो हो सकता है कि विजयकांत कुलकर्णी भी चुनाव जीत जाते । पिछली बार पुणे से रीजनल काउंसिल के लिए छह उम्मीदवार थे, जिसमें से तीन रीजनल काउंसिल में जगह बनाने में कामयाब रहे थे; इस बार पुणे में रीजनल काउंसिल के लिए चार उम्मीदवार रहने की उम्मीद है, इसलिए अंबरीश वैद्य के रीजनल काउंसिल में जगह पाने को लेकर किसी को कोई शक नहीं है । इसके बावजूद कुछेक लोगों को अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी में कोई खास बात नहीं लग रही है, जबकि कई लोग हैं जो अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी को लेकर बहुत रोमांच महसूस कर रहे हैं । 
पुणे में जिन लोगों को अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी में बहुत रोमांच महसूस हो रहा है, वह दरअसल अंबरीश वैद्य के व्यक्तित्व, प्रोफेशन को लेकर उनकी सोच तथा काम करने के उनके तरीके से बहुत प्रभावित हैं - और विश्वास करते हैं कि अंबरीश वैद्य अपनी सक्रियता को यदि सचमुच चुनावी समर्थन यानि वोटों में बदल सके, तो इंस्टीट्यूट में पुणे को एक खास जगह और पहचान दिलवायेंगे । पुणे के जो लोग यह काम कर सकते थे, दुर्भाग्य से वह चुनावी पचड़े से दूर रहे; और जो पचड़े में कूदे भी उन्हें चुनावी सफलता नहीं मिली; और जिन्हें चुनावी सफलता मिली, वह 'छोटे' कद के साबित हुए । रीजनल काउंसिल के चुनाव में पिछली बार सत्यनारायण मुंदड़ा को सबसे ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन वह इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए कुछ भी डिलीवर करने में विफल रहे हैं । हालाँकि वह लोगों के काम तो खूब आते हैं, लेकिन वह जिस तरह के काम करने में दिलचस्पी लेते हैं उनका प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट को नई दिशा या विज़न देने से कोई वास्ता नहीं है । पहली वरीयता के वोटों में दिलीप ऑप्टे से पीछे रहने के बावजूद कुल वोटों की गणना में दूसरे नंबर पर रहने वाले सर्वेश जोशी अपनी अतिमहत्वाकांक्षा के ऐसे शिकार हुए कि कुछ करना/कराना तो दूर, अपने दोस्तों और सहयोगियों तक को खो बैठे । पहली वरीयता के वोटों की गिनती में दूसरे स्थान पर रहते हुए वोटों की कुल गणना में तीसरे स्थान पर खिसके दिलीप ऑप्टे यह समझने में ही विफल रहे कि वह करें तो क्या करें ? रीजनल काउंसिल में अपनी कोई भूमिका खोजने में विफल रहे दिलीप ऑप्टे के बारे में माना जा रहा है कि वह सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के बारे में सोच रहे हैं । 
दिलीप ऑप्टे लेकिन सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी को लेकर कुछ उलझन में हैं । दिलीप ऑप्टे की चूँकि मुंबई में भी सक्रियता है, इसलिए उनके कुछेक समर्थक उन्हें सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उत्साहित कर रहे हैं । सेंट्रल काउंसिल में वेस्टर्न रीजन की तीन सीटों के खाली होने का वास्ता देकर कुछेक समर्थक दिलीप ऑप्टे को सेंट्रल काउंसिल के लिए कूद पड़ने की सलाह दे रहे हैं । किंतु उनके अन्य कुछेक समर्थकों का सुझाव है कि उन्हें यदि सचमुच में सेंट्रल काउंसिल में आने का मन है, तो उन्हें उसके लिए अगली बार प्रयास करना चाहिए - जब एसबी जावरे की सीट खाली होगी । यह सुझाव देने वालों का तर्क है कि इस बार यदि वह सफल नहीं हो पाए, तो फिर उनका राजनीतिक जीवन खत्म हुआ ही समझो; इसलिए दिलीप ऑप्टे के लिए इनकी सलाह है कि इस बार उन्हें रीजनल काउंसिल में ही आना चाहिए जिससे कि अगली बार सेंट्रल काउंसिल में आने की उनकी तैयारी में निरंतरता बनी रहे । इन्होंने दिलीप ऑप्टे को सावधान भी किया है कि रीजनल काउंसिल में उनकी जगह यदि अंबरीश वैद्य ने ले ली, तो फिर अगली बार सेंट्रल काउंसिल के लिए अंबरीश वैद्य आयेंगे और तब अंबरीश वैद्य का ही पलड़ा भारी साबित होगा । जो लोग इस बार दिलीप ऑप्टे के लिए सेंट्रल काउंसिल का उम्मीदवार होने की वकालत कर रहे हैं, उनका कहना है कि सेंट्रल काउंसिल का चुनाव इस बार वह यदि नहीं भी जीत पाते हैं तो अगली बार के लिए तो उनका दावा मजबूत हो ही जायेगा - और यदि जीत गए, तो फिर उनकी राजनीति सुरक्षित है ही । इनका डर दरअसल यह है कि रीजनल काउंसिल का चुनाव न लड़ने में भी घाटा है, और लड़ने में खतरा यह है कि दिलीप ऑप्टे यदि नहीं जीत सके, तो फिर उनके लिए सब खत्म जायेगा । रीजनल काउंसिल का चुनाव न लड़ने और या हारने से बेहतर दिलीप ऑप्टे के लिए सेंट्रल काउंसिल का चुनाव हारना होगा । समर्थकों के अलग अलग सुझावों ने दिलीप ऑप्टे को और भी ज्यादा कन्फ्यूज कर दिया है ।   
उनका यह कन्फ्यूजन वास्तव में अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी ने और बढ़ा दिया है । पुणे में जो लोग अंबरीश वैद्य को जानते/पहचानते हैं, और उनकी सक्रियता को देखते रहे हैं उनका मानना और कहना है कि अंबरीश वैद्य इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में लंबी पारी खेलने के लिए उतरे हैं । इसके लिए उन्होंने पर्याप्त 'होमवर्क' किया है और एक एक कदम करके अपनी राजनीतिक यात्रा पर बढ़ रहे हैं । पिछली बार ब्रांच का चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने पर्दे के पीछे से अपने साथियों के चुनाव के संचालन में हिस्सेदारी की थी और इस तरह चुनावी प्रक्रिया को नजदीक से देखने/समझने का प्रयास किया था । उन्होंने सीखा कि कैसे अपने आप को डी-ग्रेड किए बिना भी लोगों के बीच अपनी साख और स्वीकार्यता बनाई जा सकती है, तथा वोट प्राप्त किए जा सकते हैं । पिछली बार इंदौर ब्राँच के चुनाव में उन्हें सबसे ज्यादा वोट मिले थे । इसके बावजूद अंबरीश वैद्य ब्राँच में सत्ता की लड़ाई में नहीं पड़े/फँसे और ब्राँच में कोई पद पाए बिना भी प्रोफेशन से जुड़े लोगों के बीच काम करते रहे और उन्हें प्रोफेशन के प्रति जागरूक व जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित करते रहे । लोगों ने भी अंबरीश वैद्य में एक नए तरह के 'नेता' को देखा/पहचाना - और माना कि उन्हें अंबरीश वैद्य जैसी सोच और सक्रियता रखने वाला नेता ही चाहिए । अंबरीश वैद्य ने एक बिलकुल नई तरह की राजनीति की नींव रखी है - और उन्हें अभी तक उसके सकारात्मक नतीजे ही मिले हैं । रीजनल काउंसिल के लिए - अभी जो स्थिति है उसमें - उनकी जीत को लेकर शायद ही किसी को कोई शक हो । लोगों को बल्कि लग यह रहा है कि अंबरीश वैद्य की जिस तरह की सक्रियता है, उसमें रीजनल काउंसिल का चुनाव जीतने के बाद की राजनीति को साधने की तैयारी ज्यादा है । दरअसल इसीलिए रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अंबरीश वैद्य की उम्मीदवारी ने पुणे में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा कर दी है ।