Tuesday, September 29, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के लिए मनीष बक्षी की उम्मीदवारी न आने से पराग रावल का रास्ता और आसान हुआ लगता है

अहमदाबाद । मनीष बक्षी की उम्मीदवारी के प्रस्तुत न होने से इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल का सदस्य होने की पराग रावल की कोशिशों को जहाँ बल मिला है, वहाँ जुल्फेश शाह के गुजरात में वोट जुटाने के लिए दिलचस्पी लेने की खबरों ने पराग रावल के लिए चुनौती भी पैदा कर दी है । इस तरह पराग रावल के लिए हाल-फिलहाल के दिन मिलीजुली प्रतिक्रिया वाले रहे - एक तरफ उनके लिए अच्छी खबर रही, तो दूसरी तरफ उन्हें सावधानी बरतने वाला संदेश मिला । पराग रावल के समर्थकों तथा उनकी उम्मीदवारी में सकारात्मक संभावना देखने वाले लोगों का हालाँकि मानना और कहना है कि मनीष बक्षी की उम्मीदवारी न आने की जो अच्छी खबर है, उसका फायदा ज्यादा बड़ा है, और जुल्फेश शाह की सक्रियता के संदर्भ में सावधानी बरतने वाला संदेश - ठीक है कि एक संदेश है, लेकिन जो कोई नुकसान पहुँचाता हुआ नहीं दिख रहा है । इसलिए इंस्टीट्यूट के चुनाव के संदर्भ में उम्मीदवारों की सूची सामने आने के बाद पराग रावल की उम्मीदवारी के समर्थक बम बम हैं । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए वेस्टर्न रीजन में होने वाले चुनाव में तमाम लोगों की निगाह पराग रावल पर टिकी हुई हैं । पिछले रीजनल काउंसिल के चुनाव में उन्हें कई सेंटर पर जिस तरह भर भर कर वोट मिले थे, उसे देखते और याद करते हुए कई लोगों को लग रहा है कि सेंट्रल काउंसिल में उनकी सीट तो पक्की है ही । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि पिछले रीजनल काउंसिल चुनाव में पहली वरीयता के 2068 वोट पाकर पराग रावल सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करने वाले उम्मीदवार तो बने ही थे, दूसरे नंबर पर रहे सुश्रुत चितले से वह बह्हह्हहुत आगे थे । वोट प्राप्त करने वालों की सूची में पराग रावल के बाद, दूसरे नंबर पर रहे सुश्रुत चितले को पहली वरीयता के 1555 वोट मिले थे । सबसे ज्यादा वोट पाने और दूसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार से पाँच सौ से अधिक वोटों से आगे रहने के तथ्य को देखते हुए ही सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत पराग रावल की उम्मीदवारी को सकारात्मक संभावना के साथ देखा जा रहा है । 
किंतु कई लोग पराग रावल की कामयाबी की संभावना को लेकर संशयग्रस्त भी हैं । उनका तर्क है कि सेंट्रल काउंसिल चुनाव का गणित रीजनल काउंसिल चुनाव के गणित से बिलकुल अलग होता है; तथा उसमें अलग तरह के ही फार्मूले काम करते हैं । माना जा रहा है कि इस बार जो कोटा बनेगा, उसे छू पाना हर किसी उम्मीदवार के लिए मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही होगा । इस कारण से प्रत्येक उम्मीदवार को दूसरी/तीसरी वरीयता के वोटों का सहारा लेना पड़ेगा । पराग रावल के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि उन्हें दूसरी/तीसरी वरीयता के ऐसे वोट आखिर कहाँ से मिलेंगे, तो सचमुच में उनके काम आ सकें ? मुंबई के बाहर के उम्मीदवारों के सामने दूसरी/तीसरी वरीयता के वोट जुटाने की समस्या आती ही है । मजे की बात यह देखने में आती है कि मुंबई के उम्मीदवारों को तो मुंबई में भी तथा दूर-दराज की ब्रांचेज में भी दूसरी/तीसरी वरीयता के वोट मिल जाते हैं; किंतु ब्रांचेज के उम्मीदवारों को मुंबई तो छोड़िये, दूसरी ब्रांचेज में भी दूसरी/तीसरी वरीयता के वोट जुटाने के लाले पड़ जाते हैं । सेंट्रल काउंसिल के पिछले चुनाव के आँकड़े इस समस्या की व्यापकता को बहुत स्पष्टता के साथ सामने रखते हैं । पहली वरीयता के वोटों की गिनती में प्रफुल्ल छाजेड़ से आगे रहने वाले दुर्गेश बुच और राजेश लोया तो देखते ही रह जाते हैं, जबकि दूसरी/तीसरी वरीयता के वोटों के सहारे प्रफुल्ल छाजेड़ का बेड़ा पार हो जाता है । पिछली बार जो समस्या दुर्गेश बुच के सामने थी, ठीक वही समस्या इस बार पराग रावल के सामने है । धिनल शाह तथा जय छैरा को पहली वरीयता के जो वोट मिले, उनमें से बहुतों के दूसरी/तीसरी वरीयता के वोट निस्संदेह दुर्गेश बुच को मिले होंगे, किंतु वह वोट उनके काम तो नहीं आ सके । इस बार भी गुजरात क्षेत्र के वोट धिनल शाह, जय छैरा और पराग रावल के बीच ही बँटने का अनुमान है - इन तीनों में पराग रावल के तीसरे नंबर पर रहने का अनुमान है; ऐसे में पराग रावल को गुजरात क्षेत्र में मिलने वाले दूसरी/तीसरी वरीयता के वोटों का कोई फायदा न मिलना निश्चित है । तब फिर, लाख टके का सवाल यह है कि पराग रावल को दूसरी/तीसरी वरीयता के वोट आखिर कहाँ से मिलेंगे ?
यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि पहली वरीयता के वोटों में मुंबई के उम्मीदवार यदि पराग रावल के आसपास ही रहते हैं तो दूसरी/तीसरी वरीयता के वोटों को पाकर वह आगे निकल सकते हैं । पराग रावल के नजदीकियों तथा उनके समर्थकों का कहना लेकिन यह है कि इस समस्या से वह अच्छी तरह वाकिफ हैं, और इससे निपटने के लिए पराग रावल ने पूरी तैयारी की हुई है । पराग रावल के एक नजदीकी ने बताया कि एक अच्छी बात यह है कि इस बार की सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी का फैसला पराग रावल ने पिछले चुनाव के समय ही कर लिया था; और पिछले चुनाव में राजेश लोया तथा दुर्गेश बुच के साथ जो हुआ, उसका 'कारण' तभी पहचान/समझ लिया था । इसलिए पराग रावल ने पिछले ढाई वर्ष दूसरी/तीसरी वरीयता के वोटों की व्यवस्था करने का ही काम किया है । इसके लिए उन्होंने मुंबई में भी, तथा महाराष्ट्र की ब्रांचेज में भी अपना समर्थन आधार बनाया/बढ़ाया है । पराग रावल के नजदीकियों का कहना है कि पराग रावल ने अपनी उम्मीदवारी की सफलता की निर्भरता गुजरात तक ही सीमित नहीं रखी है, बल्कि महाराष्ट्र तक में प्रभावी अभियान चलाया है और अपनी पॉकेट्स बनाई हैं । ऐसा उन्होंने इसलिए भी किया, क्योंकि मनीष बक्षी की उम्मीदवारी को देखते हुए वह पहले से ही अपने चुनाव को काफी चुनौतीपूर्ण मान रहे थे । मनीष बक्षी को इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट सुनील तलति के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, जिसके कारण मुसीबत पराग रावल के हिस्से ही आनी थी । इस मुसीबत से बचने के लिए ही पराग रावल ने गुजरात के बाहर भी अपने लिए समर्थन जुटाने के जुगाड़ किए हैं । ऐसे में अब जब मनीष बक्षी की उम्मीदवारी की संभावना ही खत्म हो गयी है, तो यह पराग रावल के लिए तो बड़े वरदान की बात हो गई है । 
इस वरदान के साथ लेकिन जुल्फेश शाह रूपी समस्या भी पराग रावल के सामने आ खड़ी हुई है । जुल्फेश शाह को दरअसल जबसे 'अपने घर' विदर्भ में झटके लगना शुरू हुए हैं, तब से समर्थन जुटाने के लिए उन्होंने इधर-उधर हाथ-पैर मारना शुरू किया है । इसके लिए उन्होंने गुजरात को अपने लिए एक आसान 'चारागाह' के रूप में पहचाना है । जुल्फेश शाह के नजदीकियों के अनुसार, गुजराती होने के कारण जुल्फेश शाह को लगता है कि वह गुजरात में यदि समर्थन जुटाने की कोशिश करेंगे, तो यहाँ अवश्य ही काफी समर्थन जुटा लेंगे । समझा जाता है कि जुल्फेश शाह को गुजरात में जो भी समर्थन मिलेगा, वह पराग रावल के समर्थन की कीमत पर ही मिलेगा । पराग रावल के समर्थक ही नहीं, कुछेक अन्य लोग भी लेकिन इस बात से सहमत नहीं दिख रहे हैं । उनका कहना है कि जुल्फेश शाह यदि पहले से गुजरात में कुछ काम करते, तो यहाँ समर्थन जुटा भी सकते थे; लेकिन गुजराती होने का फायदा उठाने के बारे में उन्होंने बहुत देर से सोचा, और तब तक यहाँ की सारी जगह दूसरों ने कब्जा ली है । जुल्फेश शाह के लिए समस्या की बात यहाँ यह है कि यहाँ उनकी वकालत करने के लिए प्रमुख नाम नहीं हैं । अहमदाबाद का ही उदाहरण देते हुए कहा/बताया जा रहा है कि बाहर के उम्मीदवारों में यहाँ उनसे ज्यादा वोट तो बीएम अग्रवाल को ही मिल जायेंगे, जिनकी वकालत यहाँ राजू शाह कर रहे हैं । चुनावी खिलाड़ियों का आकलन है कि गुजरात में इस बार नौ हजार के करीब वोट पड़ेंगे, जिनमें से डेढ़ हजार के करीब वोट बाहर के उम्मीदवारों में बँटेंगे - निश्चित ही इनमें से कुछ जुल्फेश शाह को भी मिलेंगे; लेकिन इससे पराग रावल के लिए कोई खतरा पैदा होने की उम्मीद नहीं है । पराग रावल की उम्मीदवारी को कामयाब होता देख रहे लोगों में भले ही कुछ अगर-मगर चल रहे हों, लेकिन पराग रावल की उम्मीदवारी के समर्थकों के बीच उनकी सफलता को लेकर पूरी आश्वस्ति है । मनीष बक्षी की उम्मीदवारी न आने से तो वह और भी उत्साहित हो उठे हैं ।